< ᏉᎳ ᎶᎻ ᎠᏁᎯ ᏧᏬᏪᎳᏁᎸᎯ 1 >

1 ᏉᎳ, ᏥᏌ ᎦᎶᏁᏛ ᎠᎩᏅᏏᏓᏍᏗ, ᎥᎩᏅᏏᏛ ᎢᏴᏋᏁᎸᎯ, ᎥᏆᏓᏓᎴᏔᏅᎯ ᎣᏍᏛ ᎧᏃᎮᏛ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏤᎵ ᎠᏆᎵᏥᏙᏗᏱ,
पौलुस की ओर से जो यीशु मसीह का दास है, और प्रेरित होने के लिये बुलाया गया, और परमेश्वर के उस सुसमाचार के लिये अलग किया गया है
2 ᎾᏍᎩ ᎤᏚᎢᏍᏔᏅᎯ ᏥᏂᎨᏎ ᎠᎾᏙᎴᎰᏍᎩ ᏕᎬᏗᏍᎬ ᎾᎿᎭᎦᎸᏉᏗᏳ ᎪᏪᎵᎯ,
जिसकी उसने पहले ही से अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्रशास्त्र में,
3 ᎾᏍᎩ ᎤᏪᏥ ᎤᎬᏩᎵ, ᎾᏍᎩ ᏕᏫ ᎤᏁᏢᏔᏅᏛ ᎨᏒ ᏧᏕᏁᎢ ᎾᏍᎩ ᎤᏇᏓᎵ ᎨᏒᎢ;
अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह के विषय में प्रतिज्ञा की थी, जो शरीर के भाव से तो दाऊद के वंश से उत्पन्न हुआ।
4 ᎦᎸᏉᏗᏳᏍᎩᏂ ᎤᏓᏅᏙ ᎨᏒ ᎤᏣᏘ ᎤᎵᏂᎩᏛ ᎬᏂᎨᏒ ᏥᎾᎬᏁᎴ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏪᏥ ᎨᏒᎢ, ᎾᏍᎩ ᎾᎿᎭᎤᏲᎱᏒ ᏚᎴᎯᏌᏅᎢ; ᎾᏍᎩ ᏥᏌ ᎦᎶᏁᏛ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᎢᎦᏤᎵᎦ,
और पवित्रता की आत्मा के भाव से मरे हुओं में से जी उठने के कारण सामर्थ्य के साथ परमेश्वर का पुत्र ठहरा है।
5 ᎾᏍᎩ ᎣᎩᏁᎸᎯ ᏥᎩ ᎬᏩᎦᏘᏯ ᎤᏓᏙᎵᏍᏗ ᎨᏒ ᎠᎴ ᎣᎩᏅᏏᏛ ᎨᏒᎢ, ᎾᏍᎩ ᏧᎾᏓᏂᎸᎢᏍᏗᏱ ᎪᎯᏳᏗ ᎨᏒ ᎾᏂᎥ ᏧᎾᏓᎴᏅᏛ ᏴᏫ, ᎾᏍᎩ ᏚᏙᎥ ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᏍᎬᎢ;
जिसके द्वारा हमें अनुग्रह और प्रेरिताई मिली कि उसके नाम के कारण सब जातियों के लोग विश्वास करके उसकी मानें,
6 ᎾᎿᎭᎾᏍᏉ ᎢᏣᏓᏑᏯ ᏂᎯ, ᏥᏌ ᎦᎶᏁᏛ ᎢᏥᏯᏅᏛ ᏥᎩ;
जिनमें से तुम भी यीशु मसीह के होने के लिये बुलाए गए हो।
7 ᏂᏥᎥ ᎶᎻ, ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎢᏥᎨᏳᎯ, ᎡᏥᏯᏅᏛ ᎢᏣᏓᏅᏘ; ᎬᏩᎦᏘᏯ ᎤᏓᏙᎵᏍᏗ ᎨᏒ ᎠᎴ ᏅᏩᏙᎯᏯᏛ ᎨᏤᎳᏗᏙᎮᏍᏗ, ᏅᏓᏳᎾᎵᏍᎪᎸᏔᏅᎯ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎢᎩᏙᏓ, ᎠᎴ ᎤᎬᏫᏳᎯ ᏥᏌ ᎦᎶᏁᏛ.
उन सब के नाम जो रोम में परमेश्वर के प्यारे हैं और पवित्र होने के लिये बुलाए गए हैं: हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।
8 ᎢᎬᏱᏱ ᎨᏒᎢ, ᏥᏯᎵᎡᎵᏤᎭ ᎠᏆᏁᎳᏅᎯ ᎬᏗᎭ ᏚᏙᎥ ᏥᏌ ᎦᎶᏁᏛ, ᏂᏥᎥ ᏂᎯ ᎨᏒ ᎢᏳᏍᏗ, ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᎭ ᎢᏦᎯᏳᏒ ᏂᎬᎾᏛ ᎡᎶᎯ ᎠᏂᏃᎮᏍᎬᎢ.
पहले मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, कि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारे जगत में हो रही है।
9 ᎤᏁᎳᏅᎯᏰᏃ ᎠᏉᎯᏳᏓᏁᎯ, ᎾᏍᎩ ᎪᎱᏍᏗ ᏥᏥᏯᏛᏁᎭ ᎠᏆᏓᏅᏙ ᏥᎬᏗᎭ ᎾᏍᎩ ᎣᏍᏛ ᎧᏃᎮᏛ ᎤᏪᏥ ᎤᏤᎵᎦ ᎬᏂᎨᏒ ᏂᎬᏁᎲᎢ, ᎾᏍᎩ ᏂᏥᏲᎯᏍᏗᏍᎬᎾ ᎢᏨᏁᎢᏍᏗᏍᎬᎢ, ᏂᎪᎯᎸ ᎦᏓᏙᎵᏍᏗᏍᎬ.
परमेश्वर जिसकी सेवा मैं अपनी आत्मा से उसके पुत्र के सुसमाचार के विषय में करता हूँ, वही मेरा गवाह है, कि मैं तुम्हें किस प्रकार लगातार स्मरण करता रहता हूँ,
10 ᏥᏔᏲᎯᎲᎢ, ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏃ ᏰᎵ ᏱᎩ ᎪᎯ ᎿᎭᏉ ᎣᏍᏛ ᎢᏯᏆᎵᏍᏓᏁᎸᏍᏗᏱ ᎦᎢᏒ ᏫᏨᎷᏤᏗᏱ, ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎣᏏᏳ ᎠᏰᎸᏍᎬ ᏅᏓᏳᎵᏍᏙᏗᏱ.
१०और नित्य अपनी प्रार्थनाओं में विनती करता हूँ, कि किसी रीति से अब भी तुम्हारे पास आने को मेरी यात्रा परमेश्वर की इच्छा से सफल हो।
11 ᎤᏣᏘᏰᏃ ᎠᏆᏚᎵ ᎢᏨᎪᏩᏛᏗᏱ, ᎾᏍᎩ ᏗᏨᏲᎯᏎᏗᏱ ᎪᎱᏍᏗ ᎤᏍᏗ ᎠᏓᏅᏙ ᎤᎵᏍᏕᎸᏙᏗ ᎨᏒᎢ, ᎾᏍᎩ ᏗᏣᎵᏂᎪᎯᏍᏗᏱ ᏭᎵᏱᎶᎯᏍᏗᏱ;
११क्योंकि मैं तुम से मिलने की लालसा करता हूँ, कि मैं तुम्हें कोई आत्मिक वरदान दूँ जिससे तुम स्थिर हो जाओ,
12 ᎾᏍᎩ ᎯᎠ ᏄᏍᏗ, ᎾᏍᎩ ᎠᏴ ᎢᏧᎳᎭ ᎢᎩᎧᎵᏍᏙᎯᏍᏗᏱ ᎬᏔᏅᎯ ᎠᏴ ᏂᎯᏃ ᎤᏠᏱ ᎢᎪᎯᏳᏒᎢ.
१२अर्थात् यह, कि मैं तुम्हारे बीच में होकर तुम्हारे साथ उस विश्वास के द्वारा जो मुझ में, और तुम में है, शान्ति पाऊँ।
13 ᎾᏍᎩᏃ ᎢᏓᎵᏅᏟ ᎥᏝ ᎾᏂᎦᏔᎲᎾᏉ ᎨᏎᏍᏗ ᏱᏨᏰᎵᏎᎭ, ᎾᏍᎩ ᎤᏣᏘ ᎢᏳᏩᎫᏗ ᏓᏇᎪᏔᏅ ᏫᏨᎷᏤᏗᏱ, ᎾᏍᎩ ᎪᎱᏍᏗ ᎤᎦᏔᏔᏅᎯ ᏂᎯ ᎾᏍᏉ ᎢᏤᎲ ᎠᎩᎪᏩᏛᏗᏱ ᎠᎩᏰᎸᏒᎩ, ᎾᏍᎩᏯ ᏄᏍᏛ ᎠᏂᏐᎢ ᏧᎾᏓᎴᏅᏛ ᏴᏫ ᏓᏁᏩᏗᏒᎢ; ᎠᏎᏃ ᎪᎯ ᎢᏯᏍᏗ ᎠᏆᏓᏄᎴᎭ.
१३और हे भाइयों, मैं नहीं चाहता कि तुम इससे अनजान रहो कि मैंने बार बार तुम्हारे पास आना चाहा, कि जैसा मुझे और अन्यजातियों में फल मिला, वैसा ही तुम में भी मिले, परन्तु अब तक रुका रहा।
14 ᎬᎩᏚᎦ ᎢᏧᎳ ᎠᏂᎪᎢ ᎠᎴ ᏅᏩᎾᏓᎴ ᏴᏫ, ᎠᏂᎦᏔᎾᎢ ᎠᎴ ᎠᏂᎦᏔᎾᎢ ᏂᎨᏒᎾ.
१४मैं यूनानियों और अन्यभाषियों का, और बुद्धिमानों और निर्बुद्धियों का कर्जदार हूँ।
15 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎢᎬᏆᏛᏁᏗ ᎨᏒ ᎢᎦᎢ, ᎠᏆᏛᏅᎢᏍᏗᏉ ᎣᏍᏛ ᎧᏃᎮᏛ ᎢᏨᏯᎵᏥᏙᏁᏗᏱ ᎶᎻ ᎾᏍᏉ ᎢᏤᎯ ᏂᎯ.
१५इसलिए मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ।
16 ᎥᏝᏰᏃ ᏱᎦᏕᎣᏍᎦ ᎣᏍᏛ ᎧᏃᎮᏛ ᎦᎶᏁᏛ ᎤᏤᎵᎦ; ᎾᏍᎩᏰᏃ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᎵᏂᎩᏗᏳ ᎨᏒ ᎬᏂᎨᏒ ᎢᎬᏁᎯ, ᎾᏍᎩ ᎾᎿᎭᎠᎾᎵᏍᏕᎸᏙᏗᏍᎬ ᎾᏂᎥ ᎠᏃᎯᏳᎲᏍᎩ; ᎠᏂᏧᏏ ᎢᎬᏱ, ᎠᎴ ᎾᏍᏉ ᎠᏂᎪᎢ.
१६क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिये, पहले तो यहूदी, फिर यूनानी के लिये, उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है।
17 ᎾᎿᎭᏰᏃ ᎬᏂᎨᏒ ᎢᎬᏁᎸᎯ ᏄᏍᏛ ᎤᏓᏚᏓᎴᏍᏙᏗ ᎨᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ, ᎪᎯᏳᏗ ᎨᏒ ᏅᏛᏓᎴᎲᏍᎩ, ᎠᎴ ᎪᎯᏳᏗ ᎨᏒ ᏩᏍᏆᏗᏍᏗᏍᎩ; ᎾᏍᎩᏯ ᏂᎬᏅᎪᏪᎸᎢ, ᏚᏳᎪᏛᏍᎩᏂ ᎢᏯᏛᏁᎯ ᎪᎯᏳᏗ ᎨᏒ ᎤᏛᏂᏗᏍᏕᏍᏗ.
१७क्योंकि उसमें परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिये प्रगट होती है; जैसा लिखा है, “विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।”
18 ᎤᎾᎳᏅᎯᏰᏃ ᎤᏔᎳᏬᎯᏍᏗ ᎨᏒ ᎬᏂᎨᏒ ᎢᎬᏁᎸᎯ ᎦᎸᎶᎢ ᏨᏗᏓᎴᎲᏍᎦ ᏥᏓᎦᏘᎴᎦ ᏄᏓᎴᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᏄᏂᎸᏉᏛᎾ ᎨᏒ, ᎠᎴ ᏂᏚᏳᎪᏛᎾ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗ ᎨᏒ ᏴᏫ, ᎾᏍᎩ ᏚᏳᎪᏛ ᏣᏂᎾᎯᏍᏗᎭ ᎤᏲ ᏚᏂᎸᏫᏍᏓᏁᎲᎢ;
१८परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
19 ᏅᏗᎦᎵᏍᏙᏗᎭ ᎾᏍᎩ Ꮎ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᏰᎵ ᎬᎦᏙᎥᎯᏍᏙᏗ ᎨᏒ ᎬᏂᎨᏒ ᎢᎬᏁᎸᎯ ᎠᏁᎲᎢ; ᎤᏁᎳᏅᎯᏰᏃ ᏚᎾᏄᎪᏫᏎᎸ.
१९इसलिए कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
20 ᎾᏍᎩᏰᏃ ᏗᎬᎪᏩᏛᏗ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒ ᏧᏤᎵᎦ ᎬᏂᎨᏒᎢᏳ ᏗᎬᎪᏩᏛᏗ ᎢᎩ ᎡᎶᎯ ᏧᏙᏢᏅ ᏅᏓᎬᏩᏓᎴᏅᏛ, ᏗᎦᎪᎵᏍᏙᏗ ᎢᎩ ᏧᏓᎴᏅᏛ ᏗᎪᏢᏅᎯ ᎨᏒᎢ, ᎾᏍᎩ ᏅᏧᏓᎴᏅᎲᎾ ᎤᎵᏂᎩᏗᏳ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎨᏒᎢ; ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎥᏝ ᏳᏂᎭ ᏧᎾᏢᏫᏍᏙᏗ; (aïdios g126)
२०क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य और परमेश्वरत्व, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं। (aïdios g126)
21 ᎤᏂᎦᏙᎥᏒᏰᏃ ᎤᏁᎳᏅᎯ, ᎥᏝ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎦᎸᏉᏙᏗ ᎨᏒ ᏳᏂᎸᏉᏙᏔᏁᎢ, ᎥᏝ ᎠᎴ ᏯᎾᎵᎮᎵᎨᎢ, ᎠᎾᏓᏅᏖᏍᎬᏍᎩᏂ ᎠᏎᏉᏉ ᏄᎵᏍᏔᏁᎢ, ᎠᎴ ᏧᏁᎫ ᏧᏂᎾᏫ ᏚᎵᏏᎲᏎᎢ;
२१इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहाँ तक कि उनका निर्बुद्धि मन अंधेरा हो गया।
22 ᎠᏂᎦᏔᎾᎢ ᎠᎾᏤᎸᏍᎬᎢ, ᎤᏂᏁᎫ ᏄᎾᎵᏍᏔᏁᎢ;
२२वे अपने आपको बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए,
23 ᎠᎴ ᎤᏂᏁᏟᏴᏎ ᎦᎸᏉᏗᏳ ᎨᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎠᏲᎱᏍᎩ ᏂᎨᏒᎾ ᎤᏤᎵᎦ, ᎠᏲᎱᏍᎩ ᏴᏫ ᏗᏟᎶᏍᏔᏅᎯ ᎾᏍᎩᏯ ᏄᏅᏁᎴᎢ, ᎠᎴ ᏥᏍᏆ, ᎠᎴ ᏅᎩ ᏗᏂᏅᏌᏗ, ᎠᎴ ᎠᎾᏓᎾᏏᏂᏙᎯ.
२३और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।
24 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎾᏍᏉ ᏕᎤᏲᏎ ᎦᏓᎭ ᏧᏂᎸᏫᏍᏓᏁᏗᏱ ᎤᏅᏙᏗᏱ ᎤᏅᏒ ᏧᏂᎾᏫᏱ ᎤᎾᏑᎸᏅᏗ ᎨᏒᎢ, ᏧᏂᏐᏢᎢᏍᏙᏗᏱ ᏗᏂᏰᎸ ᎤᏅᏒᏉ ᏂᏓᎾᏓᏛᏁᎲᎢ;
२४इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उनके मन की अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
25 ᎾᏍᎩ ᎤᏙᎯᏳᏒ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏃᎮᏍᎩ ᎤᏂᏁᏟᏴᏍᏔᏁ ᎦᏰᎪᎩ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᎤᏟ ᎢᎦᎢ ᎤᎾᏓᏙᎵᏍᏓᏁᎴ ᎠᎴ ᎪᎱᏍᏗ ᎤᎾᏛᏁᎴ ᎠᎪᏢᏅᎯᏉ ᎨᏒ ᎡᏍᎦᏉ ᎢᎦᎢ ᎤᏬᏢᏅᎯ, ᎾᏍᎩ ᎦᎸᏉᏙᏗ ᏥᎩ ᏂᎪᎯᎸᎢ. ᎡᎺᏅ. (aiōn g165)
२५क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन। (aiōn g165)
26 ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᏕᎤᏲᏒᎩ ᎤᏕᎰᎯᏍᏗ ᎤᎾᏚᎸᏅᏗᏱ; ᎾᏍᏉᏰᏃ ᎠᏂᎨᏴ ᏧᎾᏤᎵᎦ ᎾᏍᎩ ᎠᎲ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗ ᎨᏒ ᎤᏂᏁᏟᏴᏍᏔᏁ ᎾᏍᎩ ᎠᎲ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒᎢ.
२६इसलिए परमेश्वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहाँ तक कि उनकी स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को उससे जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला।
27 ᎠᎴ ᎾᏍᏉ ᎠᏂᏍᎦᏯ ᏚᏂᏲᏍᎨ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗ ᎨᏒ ᎾᏍᎩ ᎠᏂᎨᏴ ᎨᎦᏁᎳᏅᎯ ᎤᎬᏩᎵ ᎨᏒᎢ, ᎤᏣᏘ ᏓᎾᏓᏕᎳᏲᏍᎨ ᎤᏅᏒᏉ ᎨᏒᎢ; ᎠᏂᏍᎦᏯ ᎠᏂᏍᎦᏯᏉ ᎪᎱᏍᏗ ᏓᎾᏓᏛᏗᏍᎨ ᏚᏂᎸᏫᏍᏓᏁᎮ ᎾᏍᎩ ᎤᏕᎰᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᎠᎴ ᎤᏅᏒ ᎨᏒ ᎤᎾᎵᏩᏛᎡᎮ ᏚᏳᎪᏛ ᎨᎦᎫᏴᎡᏗ ᎨᏒ ᎾᏍᎩ ᎤᏂᎵᏓᏍᏗᏍᎬᎢ.
२७वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।
28 ᎠᎴ ᎾᏍᎩ ᎣᏏ ᏄᏂᏰᎸᏒᎾ ᏥᎨᏎ ᏄᏍᏛ ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎤᏂᎦᏙᎥᏒ ᎤᏂᏍᏆᏂᎪᏙᏗᏱ, ᎤᏁᎳᏅᎯ ᏕᎤᏲᏎ ᎨᏥᏐᏅᎢᏍᏔᏅᎯ ᎢᏳᎾᎵᏍᏙᏗᏱ ᏚᎾᏓᏅᏛᎢ, ᎾᏍᎩ ᎢᎬᏛᏁᏗ ᏂᎨᏒᎾ ᎨᏒ ᎢᏳᎾᏛᏁᏗᏱ;
२८जब उन्होंने परमेश्वर को पहचानना न चाहा, तो परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
29 ᎤᏂᎧᎵᏨᎯ ᎨᏒ ᏄᏓᎴᏒ ᏂᏚᏳᎪᏛᎾ ᎨᏒᎢ, ᎤᏕᎵᏛ ᏗᏂᏏᏗ ᎨᏒᎢ, ᎤᏲ ᎢᏯᏓᏛᏁᏗ ᎨᏒᎢ, ᏧᎬᏩᎶᏗ ᎠᎬᎥᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᎤᏂᏲ ᎨᏒᎢ; ᎤᏂᎧᎵᏨᎯ ᎠᏛᏳᎨᏗ ᎨᏒᎢ, ᏗᏓᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᏗᏘᏲᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᎠᏠᏄᎮᏛ, ᎤᏲ ᏗᎦᎸᏫᏍᏓᏁᏗ ᎨᏒᎢ; ᎠᎾᏙᏅᎢᎯ,
२९वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैर-भाव से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर,
30 ᎤᏲ ᏗᎾᏓᏃᎮᎵᏙᎯ, ᎤᏁᎳᏅᎯ ᎠᏂᏂᏆᏘᎯ, ᎬᏩᎾᏓᏐᏢᏗ; ᎤᎾᏢᏉᏗ, ᎤᎾᏢᏆᏌᏗ, ᎠᏃᎷᏩᏘᏍᎩ ᏧᏓᎴᏅᏛ ᎤᏲᎢ, ᏂᏚᏃᎯᏳᏒᎾ ᏧᏂᎦᏴᎵᎨᎢ,
३०गपशप करनेवाले, निन्दा करनेवाले, परमेश्वर से घृणा करनेवाले, हिंसक, अभिमानी, डींगमार, बुरी-बुरी बातों के बनानेवाले, माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले,
31 ᏄᏃᎵᏣᏛᎾ, ᎧᏃᎮᏛ ᏚᎾᏠᎯᏍᏛ ᎠᏂᏲᏍᏗᏍᎩ, ᎪᎱᏍᏗ ᏧᏅᎾ ᏂᏚᏂᎨᏳᏒᎾ, ᎬᏩᏃᎯᏍᏗ ᏂᎨᏒᎾ, ᏄᎾᏓᏙᎵᏣᏛᎾ;
३१निर्बुद्धि, विश्वासघाती, स्वाभाविक व्यवहार रहित, कठोर और निर्दयी हो गए।
32 ᎾᏍᎩ ᏣᏂᎦᏔᎭ ᏄᏍᏛ ᏕᎫᎪᏗᏍᎬ ᎤᏁᎳᏅᎯ, ᎾᏍᎩ ᎩᎶ ᎾᏍᎩ ᎢᏳᏍᏗ ᏧᎸᏫᏍᏓᏁᎯ ᏰᎵᏉ ᏗᎬᏩᏂᏲᎱᎯᏍᏗ ᎨᏒᎢ, ᎥᏝ ᎾᏍᎩᏉ ᎾᎾᏛᏁᎲ ᎤᏩᏒ ᏱᎩ, ᎣᏏᏳᏍᎩᏂ ᏚᏂᏰᎸᎭ ᎾᏍᎩ ᎢᏯᎾᏛᏁᎯ.
३२वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं कि ऐसे-ऐसे काम करनेवाले मृत्यु के दण्ड के योग्य हैं, तो भी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं वरन् करनेवालों से प्रसन्न भी होते हैं।

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