< מִשְׁלֵי 25 >

גַּם־אֵ֭לֶּה מִשְׁלֵ֣י שְׁלֹמֹ֑ה אֲשֶׁ֥ר הֶ֝עְתִּ֗יקוּ אַנְשֵׁ֤י ׀ חִזְקִיָּ֬ה מֶֽלֶךְ־יְהוּדָֽה׃ 1
सुलैमान के नीतिवचन ये भी हैं; जिन्हें यहूदा के राजा हिजकिय्याह के जनों ने नकल की थी।
כְּבֹ֣ד אֱ֭לֹהִים הַסְתֵּ֣ר דָּבָ֑ר וּכְבֹ֥ד מְ֝לָכִ֗ים חֲקֹ֣ר דָּבָֽר׃ 2
परमेश्वर की महिमा, गुप्त रखने में है परन्तु राजाओं की महिमा गुप्त बात के पता लगाने से होती है।
שָׁמַ֣יִם לָ֭רוּם וָאָ֣רֶץ לָעֹ֑מֶק וְלֵ֥ב מְ֝לָכִ֗ים אֵ֣ין חֵֽקֶר׃ 3
स्वर्ग की ऊँचाई और पृथ्वी की गहराई और राजाओं का मन, इन तीनों का अन्त नहीं मिलता।
הָגֹ֣ו סִיגִ֣ים מִכָּ֑סֶף וַיֵּצֵ֖א לַצֹּרֵ֣ף כֶּֽלִי׃ 4
चाँदी में से मैल दूर करने पर वह सुनार के लिये काम की हो जाती है।
הָגֹ֣ו רָ֭שָׁע לִפְנֵי־מֶ֑לֶךְ וְיִכֹּ֖ון בַּצֶּ֣דֶק כִּסְאֹֽו׃ 5
वैसे ही, राजा के सामने से दुष्ट को निकाल देने पर उसकी गद्दी धर्म के कारण स्थिर होगी।
אַל־תִּתְהַדַּ֥ר לִפְנֵי־מֶ֑לֶךְ וּבִמְקֹ֥ום גְּ֝דֹלִ֗ים אַֽל־תַּעֲמֹֽד׃ 6
राजा के सामने अपनी बड़ाई न करना और बड़े लोगों के स्थान में खड़ा न होना;
כִּ֤י טֹ֥וב אֲמָר־לְךָ֗ עֲ‍ֽלֵ֫ה הֵ֥נָּה מֵֽ֭הַשְׁפִּ֣ילְךָ לִפְנֵ֣י נָדִ֑יב אֲשֶׁ֖ר רָא֣וּ עֵינֶֽיךָ׃ 7
उनके लिए तुझ से यह कहना बेहतर है कि, “इधर मेरे पास आकर बैठ” ताकि प्रधानों के सम्मुख तुझे अपमानित न होना पड़े.
אַל־תֵּצֵ֥א לָרִ֗ב מַ֫הֵ֥ר פֶּ֣ן מַה־תַּ֭עֲשֶׂה בְּאַחֲרִיתָ֑הּ בְּהַכְלִ֖ים אֹתְךָ֣ רֵעֶֽךָ׃ 8
जो कुछ तूने देखा है, वह जल्दी से अदालत में न ला, अन्त में जब तेरा पड़ोसी तुझे शर्मिंदा करेगा तो तू क्या करेगा?
רִֽ֭יבְךָ רִ֣יב אֶת־רֵעֶ֑ךָ וְסֹ֖וד אַחֵ֣ר אַל־תְּגָֽל׃ 9
अपने पड़ोसी के साथ वाद-विवाद एकान्त में करना और पराए का भेद न खोलना;
פֶּֽן־יְחַסֶּדְךָ֥ שֹׁמֵ֑עַ וְ֝דִבָּתְךָ֗ לֹ֣א תָשֽׁוּב׃ 10
१०ऐसा न हो कि सुननेवाला तेरी भी निन्दा करे, और तेरी निन्दा बनी रहे।
תַּפּוּחֵ֣י זָ֭הָב בְּמַשְׂכִּיֹּ֥ות כָּ֑סֶף דָּ֝בָ֗ר דָּבֻ֥ר עַל־אָפְנָֽיו׃ 11
११जैसे चाँदी की टोकरियों में सोने के सेब हों, वैसे ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।
נֶ֣זֶם זָ֭הָב וַחֲלִי־כָ֑תֶם מֹוכִ֥יחַ חָ֝כָ֗ם עַל־אֹ֥זֶן שֹׁמָֽעַת׃ 12
१२जैसे सोने का नत्थ और कुन्दन का जेवर अच्छा लगता है, वैसे ही माननेवाले के कान में बुद्धिमान की डाँट भी अच्छी लगती है।
כְּצִנַּת־שֶׁ֨לֶג ׀ בְּיֹ֬ום קָצִ֗יר צִ֣יר נֶ֭אֱמָן לְשֹׁלְחָ֑יו וְנֶ֖פֶשׁ אֲדֹנָ֣יו יָשִֽׁיב׃ פ 13
१३जैसे कटनी के समय बर्फ की ठण्ड से, वैसा ही विश्वासयोग्य दूत से भी, भेजनेवालों का जी ठंडा होता है।
נְשִׂיאִ֣ים וְ֭רוּחַ וְגֶ֣שֶׁם אָ֑יִן אִ֥ישׁ מִ֝תְהַלֵּ֗ל בְּמַתַּת־שָֽׁקֶר׃ 14
१४जैसे बादल और पवन बिना वृष्टि निर्लाभ होते हैं, वैसे ही झूठ-मूठ दान देनेवाले का बड़ाई मारना होता है।
בְּאֹ֣רֶךְ אַ֭פַּיִם יְפֻתֶּ֣ה קָצִ֑ין וְלָשֹׁ֥ון רַ֝כָּ֗ה תִּשְׁבָּר־גָּֽרֶם׃ 15
१५धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है, और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है।
דְּבַ֣שׁ מָ֭צָאתָ אֱכֹ֣ל דַּיֶּ֑ךָּ פֶּן־תִּ֝שְׂבָּעֶ֗נּוּ וַהֲקֵֽאתֹֽו׃ 16
१६क्या तूने मधु पाया? तो जितना तेरे लिये ठीक हो उतना ही खाना, ऐसा न हो कि अधिक खाकर उसे उगल दे।
הֹקַ֣ר רַ֭גְלְךָ מִבֵּ֣ית רֵעֶ֑ךָ פֶּן־יִ֝שְׂבָּעֲךָ֗ וּשְׂנֵאֶֽךָ׃ 17
१७अपने पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपने पाँव को रोक, ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे।
מֵפִ֣יץ וְ֭חֶרֶב וְחֵ֣ץ שָׁנ֑וּן אִ֥ישׁ עֹנֶ֥ה בְ֝רֵעֵ֗הוּ עֵ֣ד שָֽׁקֶר׃ 18
१८जो किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी देता है, वह मानो हथौड़ा और तलवार और पैना तीर है।
שֵׁ֣ן רֹ֭עָה וְרֶ֣גֶל מוּעָ֑דֶת מִבְטָ֥ח בֹּ֝וגֵ֗ד בְּיֹ֣ום צָרֽ͏ָה׃ 19
१९विपत्ति के समय विश्वासघाती का भरोसा, टूटे हुए दाँत या उखड़े पाँव के समान है।
מַ֥עֲדֶה בֶּ֨גֶד ׀ בְּיֹ֣ום קָ֭רָה חֹ֣מֶץ עַל־נָ֑תֶר וְשָׁ֥ר בַּ֝שִּׁרִ֗ים עַ֣ל לֶב־רָֽע׃ פ 20
२०जैसा जाड़े के दिनों में किसी का वस्त्र उतारना या सज्जी पर सिरका डालना होता है, वैसा ही उदास मनवाले के सामने गीत गाना होता है।
אִם־רָעֵ֣ב שֹׂ֭נַאֲךָ הַאֲכִלֵ֣הוּ לָ֑חֶם וְאִם־צָ֝מֵ֗א הַשְׁקֵ֥הוּ מָֽיִם׃ 21
२१यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना;
כִּ֤י גֶֽחָלִ֗ים אַ֭תָּה חֹתֶ֣ה עַל־רֹאשֹׁ֑ו וֽ͏ַ֝יהוָ֗ה יְשַׁלֶּם־לָֽךְ׃ 22
२२क्योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा, और यहोवा तुझे इसका फल देगा।
ר֣וּחַ צָ֭פֹון תְּחֹ֣ולֵֽל גָּ֑שֶׁם וּפָנִ֥ים נִ֝זְעָמִ֗ים לְשֹׁ֣ון סָֽתֶר׃ 23
२३जैसे उत्तरी वायु वर्षा को लाती है, वैसे ही चुगली करने से मुख पर क्रोध छा जाता है।
טֹ֗וב שֶׁ֥בֶת עַל־פִּנַּת־גָּ֑ג מֵאֵ֥שֶׁת מִדֹונִים (מִ֝דְיָנִ֗ים) וּבֵ֥ית חָֽבֶר׃ 24
२४लम्बे चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।
מַ֣יִם קָ֭רִים עַל־נֶ֣פֶשׁ עֲיֵפָ֑ה וּשְׁמוּעָ֥ה טֹ֝ובָ֗ה מֵאֶ֥רֶץ מֶרְחָֽק׃ 25
२५दूर देश से शुभ सन्देश, प्यासे के लिए ठंडे पानी के समान है।
מַעְיָ֣ן נִ֭רְפָּשׂ וּמָקֹ֣ור מָשְׁחָ֑ת צַ֝דִּ֗יק מָ֣ט לִפְנֵֽי־רָשָֽׁע׃ 26
२६जो धर्मी दुष्ट के कहने में आता है, वह खराब जल-स्रोत और बिगड़े हुए कुण्ड के समान है।
אָ֘כֹ֤ל דְּבַ֣שׁ הַרְבֹּ֣ות לֹא־טֹ֑וב וְחֵ֖קֶר כְּבֹדָ֣ם כָּבֹֽוד׃ 27
२७जैसे बहुत मधु खाना अच्छा नहीं, वैसे ही आत्मप्रशंसा करना भी अच्छा नहीं।
עִ֣יר פְּ֭רוּצָה אֵ֣ין חֹומָ֑ה אִ֝֗ישׁ אֲשֶׁ֤ר אֵ֖ין מַעְצָ֣ר לְרוּחֹֽו׃ 28
२८जिसकी आत्मा वश में नहीं वह ऐसे नगर के समान है जिसकी शहरपनाह घेराव करके तोड़ दी गई हो।

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